Ginni Aunty Real Story In Hindi
हमारी साईधाम सोसाइटी में एक-दूसरे के घर आपस में कुछ इस तरह से जुड़े हुए हैं कि यदि किसी एक के घर पर सब्जी की बघार होती है तो उस घर के अगल-बगल दोनों ही घरों में छन्न की आवाज़ सुनाई पड़ती है। किचन में अदरक कूटने पर ऐसा लगता है मानो अपने ही घर के खलबट्टे का इस्तेमाल हो रहा है। ऐसी स्थिति में बगलवाली गिन्नी आंटी रोज़ सुबह छह बजे रेडियो को फुल साउंड में चला देती है, जिससे मेरी नींद पूरी तरह से उड़ चुकी होती है।
इस कॉलोनी में आएं हमें एक महीना हो गया है, लेकिन इस दौरान मैं एक भी दिन चैन से सुबह देर तक नहीं सो पाई हूं। इस बारे में मैं जब भी अपने पति नाहर से कुछ कहती हुं तो वह केवल मुस्करा देते हैं। जब कभी रविवार या छुट्टी के दिन इस बात पर मैं गिन्नी आंटी का गुस्सा नाहर पर उतारती हूं, तो वह बस इतना ही कहते हैं – ‘अरे यार निकिता, क्यों इतना गुस्सा करती हो। बेचारी आंटी बुजुर्ग हैं। बुढ़ापे में ठीक से नींद नहीं आती होगी, इसलिए सुबह जल्दी उठ जाती है। वैसे भी अकेली रहती हैं। उनके पास काम तो कुछ होता नहीं होगा, इसलिए रेडियो सुनती रहती हैं।
ऐसा कहकर नाहर हमेशा आंटी का ही पक्ष लेते हैं। मुझे तो यही समझ में नहीं आता कि मेरे पति देव को ये आंटी बुजुर्ग कहां से लगती हैं। इनकी एक भी हरकत बुजुर्गो वाली नहीं है। क्या बुजुर्ग ऐसे होते हैं। बुजुर्ग तो वो होते हैं, जो सुबह-शाम ईश्वर की आराधना करते हैं, माला फेरते हैं, मंदिर जाते हैं, अपने नाती-पोते को पार्क में लेकर जाते हैं। लेकिन गिन्नी आंटी की तो बात ही निराली है। सुबह आठ बजे रेडियो बंद होने के बाद दस बजे से टीवी शुरू हो जाता है जो सारा दिन चलता ही रहता है। केवल बीच में तीन से पांच बजे तक ही बंद रहता है, शायद इस वक्त वह सोती होंगी।
गिन्नी आंटी साथ ही साथ कॉलोनी में सब्जी बेचने वाले, फल बेचने वाले, इन सभी से रोजाना कुछ ना कुछ खरीदती ही रहती हैं। हर ठेले वाले से अलग-अलग सब्जियां और फल खरीदती हैं। मजेदार बात यह है कि एक ही व्यक्ति से वह एक ही बार में सारा कुछ नहीं खरीदतीं। उनकी यह हरकत देखकर कई बार तो मुझे लगता है कि आंटी थोड़ी पागल हैं, लेकिन जब हर शाम सुंदर-सी साड़ी पहनकर होठों पर हल्की-सी लिपस्टिक लगाकर सोसाइटी कंपाउंड के पार्क में आती हैं तो उनका एक अलग ही व्यक्तित्व नजर आता है।
गिन्नी आंटी को इस तरह अकेले और बिंदास रहता देखकर मेरे मन में अक्सर कई सवाल खड़े हो जाते हैं। एक दिन मैंने अपनी कॉलोनी की ‘लोकल न्यूज चैनल’ मिसेस वर्मा से पूछ ही लिया कि ये गिन्नी आंटी अकेली क्यों रहती हैं? क्या इनके कोई बच्चे-वच्चे नहीं हैं? मेरा इतना पूछना था कि मिसेस वर्मा ने गिन्नी आंटी का पूरा बॉयोडाटा ही मेरे सामने रख दिया। मिसेज वर्मा ने मुझे बताया कि आंटी के दो बच्चे हैं। बेटी की शादी रायपुर में हुई है और बेटा बेंगलूर में किसी आईटी कंपनी में काम करता है।
दोनों बच्चों के बच्चे भी हैं। आंटी के पति को गुजरे काफी वक्त हो गया है। आंटी खुद सरकारी नौकरी में थीं। तीन साल पहले ही रिटायर हुई हैं। बकौल मिसेस वर्मा, वे अपने बेटे-बहू के साथ इसलिए नहीं रहतीं, क्योंकि इससे उनकी ये आजादी छिन जाएगी। इतने सालों से अपने मन-मुताबिक जीने की आदत जो पड़ गई है इन्हें। और फिर बहू-बेटा के साथ रहेंगी तो हर रविवार वे पार्टी कैसे कर पाएंगी ! मिसेज वर्मा की बातें सुनकर ना जाने क्यों गिन्नी आंटी के प्रति मेरे मन की खटास और बढ़ गई।
वैसे तो मैं यह जानती थी कि हर रविवार आंटी के यहां पर पार्टी होती है, क्योंकि जब हम इस घर में शिफ्ट हुए थे, उसी सप्ताह आंटी ने मुझे अपने ग्रुप में शामिल करने के लिए पार्टी में आमंत्रित किया था। परंतु मुझे शोर-शराबा पसंद ना होने की वजह से मैं वहां नहीं गई थी। मिसेज वर्मा के जाने के बाद मैं मन ही मन सोचने लगी गिन्नी आंटी कैसी औरत है जो अपनी खुशी और केवल मौजमस्ती की खातिर अपने बच्चों से दूर रहती हैं।
रविवार को नाहर को किसी जरूरी काम से बाहर जाना पड़ा, सो मैं घर पर अकेली थी। शाम के करीब छह बज रहे थे। अचानक मेरे सिर में तेज दर्द होने लगा। मैं दवाई लेकर सोने का प्रयास कर ही रही थी कि म्यूजिक और शोरशराबे के साथ गिन्नी आंटी की पार्टी शुरू हो गई। मैंने आव देखा ना ताव, सीधे आंटी के घर पहुंच गई। दरवाजे के बाहर कई सारी चप्पलें रखी हुई थीं, जिससे मैंने अंदाजा लगा लिया कि अंदर करीब पंद्रह-बीस लोग तो होंगे ही, लेकिन मेरे टारगेट पर तो गिन्नी आंटी ही थीं। मैं सीधे घर के भीतर घुस गई और जोर से चिल्लाता हुई बोली, गिन्नी आंटी…
मेरी आवाज सुनकर डांस कर रही गिन्नी आंटी रुक गई और मुस्कराती हुई मुझसे बोलीं ‘अरे निकिता बेटा आओ। तुम भी हमें जॉइन करो।
गिन्नी आंटी की मुस्कराहट और बाकी लोगों के चेहरे पर झलकती खुशी देखकर मैं कुछ कह नहीं पाई। मैंने देखा कि सभी इस पल को खुलकर जी रहे हैं। सभी अपने घरों से कुछ ना कुछ पकवान बनाकर लाए हैं और बड़े मजे से मिल-बांटकर खा रहे हैं। यहां आकर मैं अपना सिरदर्द ही भूल गई और किसलिए आई थी, यह भी। सभी से मिलकर बहुत अच्छा लग रहा था।
मुझे आज पहली बार इस बात का एहसास हुआ कि मैं गा भी अच्छा लेती हूं। नाच-गाने, खाने पीने और हंसी-मजाक के बाद पार्टी समाप्त हो गई। सभी ने मिलकर घर को व्यवस्थित किया। सब चले गए। मैं रुक गई और बचे हुए कामों में उनकी मदद करने लगी। दरी समेटती हुई मैने आंटी से कहा ‘आंटी, मैं आप से कुछ पूंछू?’

‘हां,हां पूछो, क्या पूछना है।
‘आंटी आप अकेली रहती हैं। अपने बेटे-बहू के पास क्यों नहीं चली जाती ?
मेरे इस सवाल पर आंटी एक बार के लिए तो चौंक गई, फिर मुस्कराकर बोली- ‘ऑफिस से रिटायर हो जाने या बुढ़ापा आ जाने का मतलब ये नहीं होता कि जिंदगी रुक गई है। अगर बच्चे अपनी जिंदगी जीते हैं तो क्या बुजुर्गों को भी अपनी तरह से जिंदगी जीने का अधिकार नहीं है ? क्यों बुढ़ापे को यह मान लिया जाना चाहिए कि यह एंजॉय करने का नहीं, माला फेरने, मंदिर या मस्जिद जाने या पूजा-पाठ करने का ही समय है? जब तक हाथ-पांव चल रहे है, क्यों नहीं तब तक अपने हिसाब से जिया जाएं!
आटी की बातें सुनकर मेरे मन में उनके लिए जो कड़वाहट थी, अब वह साफ हो गई। उनसे बातें करते हुए काफी देर हो चुकी थी, सो मैं घर आ गई।
सुबह छह बजे गिन्नी आंटी के रेडियो पर बज रहे गाने की मधुर धुन से मेरी नींद खुली। लेकिन आज मैं पता नहीं, उन पर क्यों भुनभुना नहीं रही थी। मैं बिस्तर से नीचे उतर गई और गुनगुनाते हुए चाय बनाने लगी।
कहानी लेखिका – प्रेमलता यदु ( युवा कहानीकार )
आशा करते है कहानी आपको पसंद आई होगी। दोस्तो कृपा कमेंट के माध्यम से जरूर बताइगा की “गिन्नी आंटी” की कहानी आपको कैसी लगी ?
इसे भी पढ़े