Bhagat Singh Biography In Hindi – दोस्तों आज हम बात करेंगे एक ऐसे इंसान की जिसने देश भक्ति में देश सबसे पहले रखा और अपनी जिंदगी देश के लिए कुर्बान कर दी। मात्र 23 साल की उम्र में जब लोग अपने कैरियर के बारे में सोचने लगते हैं, भगत सिंह उस आयु में देश के लिए फांसी पर चढ़ गए। इन सब की शुरुआत हुई 13 अप्रैल 1919 में जब अंग्रेजी सैनिकों द्वारा निहत्थे भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियां चलाकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया, जिसे आज हम जलियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से जानते है।
भगत सिंह की जिंदगी में यही वह महत्वपूर्ण मोड़ था जब उन्होंने अपनी सोच बदलकर क्रांतिकारी स्वरूप धारण कर लिया और हर एक भारतीय को आजाद भारत का स्वपन देखने पर मजबूर कर दिया। उनके क्रांतिकारी विचारों ने भारतीय जनता को इस कदर प्रेरित किया की वे देश के सबसे महान स्वतंत्रता सेनानियों में एक विभूति बन गए। उनकी फांसी की खबर ने देशवासियों को इस कदर हतोत्साहित किया कि पूरे देश में देशभक्ति की लहर कौंद पड़ी। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ प्रदर्शन एवं नारे लगने लगे और अंत में अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया।
मात्र 23 साल की एक छोटी-सी उम्र में देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले भगत सिंह आज भी लोगों की नजरों में एक यूथ आइकाॅन माने जाते हैं।
भगत सिंह की जीवनी । Bhagat Singh Biography In Hindi
पूरा नाम | भगत सिंह |
जन्म | 27 सितंबर 1907 |
जन्म स्थान | लायलपुर जिले के बंगा गांव में |
पिता का नाम | किशन सिंह |
माता का नाम | विद्यावती कौर |
शिक्षा | डी.ए.वी हाई स्कूल लाहौर, नेशनल कॉलेज लाहौर |
राष्ट्रवादी संगठन | HSRA, नौजवान भारत सभा, क्रांति दल, कीर्ति किसान पार्टी |
विचारधारा | राष्ट्रवाद, समाजवाद |
मृत्यु | 23 मार्च 193 |
मृत्यु स्थल | लाहौर जेल, पंजाब |
भगत सिंह का प्रारंभिक जीवन – Bhagat Singh Personal Life Details
एक सिख परिवार में जन्मे यूथ आइकॉन एवं आजाद भारत के निर्माता भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था, जो अब पाकिस्तान के सीमा क्षेत्र में आता है। उनके पिता का नाम किशन सिंह था, जो पेशे से एक किसान और अपने दो भाई अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह के साथ उस वक्त गदर पार्टी के सदस्य भी थे और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में पूर्ण रूप से शामिल थे। औपनिवेशिकरण विधेयक के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों में प्रदर्शन करने के कारण वे भगत सिंह के जन्म के वक्त जेल में थे। भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह उस आंदोलन के मुख्य नेता थे। उनकी माता का नाम विद्यावती कौर था।
भगत सिंह की शिक्षा – Education of Bhagat Singh
भगत सिंह ने अपनी शुरुआती स्कूल की पढ़ाई अपने गांव के ही एक स्कूल से की। प्राइमरी शिक्षा पूर्ण करने के बाद उनके पिता ने उनका दाखिला डी.ए.वी हाई स्कूल लाहौर में करवा दिया। और अपनी आगे की शिक्षा पूर्ण करने के लिए वे नेशनल कॉलेज लाहौर चलें गए। लेकिन 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उनकी सोच बदल दी और अपनी नेशनल कॉलेज लाहौर की पढ़ाई को बीच में ही छोड़कर देश की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा का गठन किया कर दिया था।
भगत सिंह और स्वतंत्रता की लड़ाई – Bhagat Singh And The Fight For Freedom
भगत सिंह को क्रांतिकारी संस्कार अपने परिवार की विरासत से ही मिले थे। उनके चाचा अजीत सिंह ने भारतीय देशभक्त संघ की स्थापना की थी। जिसकी सहायता से उन्होंने चिनाब नहर कॉलोनी बिल के विरोध में किसानों को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एकजुट किया। ब्रिटिश सरकार की ओर से अजीत सिंह पर 22 मुकदमे दायर हो चुके थे। भगत सिंह का पूरा परिवार गदर पार्टी का कट्टर समर्थक था।
भगत सिंह की अपने देश प्रेम पर एक बचपन के कहानी बहुत मशहूर है – एक बार बचपन में भगत सिंह अपने पिता के साथ खेत में गए। जहां उनके पिता अपने मित्र के साथ बात करने लगे और छोटा भगत सिंह अपने देश की मिट्टी में कुछ बौने लगा। अचानक उनके पिता के मित्र की निगाह भगत पर गई और उनसे बिना पूछे रहा ही नहीं गया फिर आखिर उन्होंने पूछ ही लिया, “भगत यह तू क्या कर रहा है”? भगत ने जवाब दिया, “मैं अपने देश की मिट्टी में बंदूके बो रहा हूं बड़े होकर गौरो को देश से भगाने में काम आएगी”।
कुछ ऐसा था हमारे भगत सिंह के देश प्रेम का जज्बा, जो बचपन से ही उन्हें अपने परिवार से विरासत में मिला था।
13 अप्रैल 1919 जलियांवाला बाग हत्याकांड में अंग्रेजी सैनिकों द्वारा निहत्थे भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियां चलाकर निर्मम हत्या कर दी गई, जब भगत सिंह ने ये नरसंहार अपनी आंखों से देखा था तब वे मात्र 12 साल के थे। उस पीड़ादायक मंजर को देखने के लिए वे अपने स्कूल से 12 किलोमीटर दूर पैदल चलकर जलियांवाला बाग पहुंचे थे। अपने भारतीय देशभक्तों को यू लहूलुहान पड़ा देखकर उनकी आंखें भर आई और उन्होंने शहीदों के खून से सनी गीली मिट्टी को उठाकर एक कपड़े में बांध लिया और अंग्रेजों से इस खूनी नरसंहार का प्रतिशोध लेने की कसम खाई।
शुरुआती दौर में भगत सिंह का परिवार गांधी जी के विचारों का समर्थन करता था। उस समय भगत सिंह भी गांधीजी के विचारों और उनके द्वारा चलाए गए अहिंसा के सिद्धांत का समर्थन करते थे। लेकिन जब चौरी – चौरा कांड के दौरान महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस लेने का ऐलान किया तो भगत सिंह को एक धक्का सा लगा क्योंकि वह इस फैसले से नाखुश थे। इसके पश्चात उनका केवल अहिंसा से ही भरोसा नहीं टूटा बल्कि उन्होंने इस आंदोलन से भी खुद को दूर कर लिया।
गांधी जी से अलग हो जाने के बाद वे गरम दल के नेता चंद्रशेखर आजाद और सुखदेव राजगुरु के साथ मिलकर काम करने लगे। उस दौरान हुए काकोरी कांड में 4 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई और अन्य 16 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इस घटना ने भगत सिंह को इतना दुखी कर दिया था की उन्होंने 1928 को अपनी पार्टी नौजवान भारत सभा को हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में मिला दिया। और उसका नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन रख दिया
आजादी की लड़ाई में वे इस कदर शुमार थे कि उन्होंने अपने विवाह का प्रस्ताव भी ठुकरा दिया।
लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला – Revenge For The Death Of Lala Lajpat Rai
1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया तो भगत सिंह ने अपने संगठन के साथ मिलकर उत्तर खुब विरोध किया। इस प्रदर्शन में क्रांतिकारी लाला लाजपत राय की भी एक अहम भूमिका रही। अंग्रेजों ने इस प्रदर्शन को खत्म करने के लिए लाठीचार्ज करवा दिया, जिस दौरान एक लाठी लाला लाजपत राय जी के सिर पर जाकर लगी। जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई।
लाजपत राय जी की मौत ने भगत सिंह और संघ को इतना क्रोधित किया कि उन्होंने अपने साथियों राजगुरु और जय गोपाल के साथ मिलकर पुलिस सुपंरिटेंडेंट स्काॅट को मारने का प्लान तैयार किया। इस लड़ाई में चंद्रशेखर आजाद भी भगत सिंह का पूरा साथ दे रहे थे। लेकिन गलती से भगत सिंह ने सुपंरिटेंडेंट स्काॅट की जगह असिस्टेंट पुलिस सौंन्देर्स को मार गिराया। अंग्रेजी सरकार ने भगत सिंह को पकड़ने के लिए चारों ओर नाकाबंदी कर दी लेकिन वे खुद को बचाने के लिए लाहौर से भाग निकले। भगत सिंह को देश की आजादी के अलावा ओर कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।
भगत सिंह को फांसी की सजा – Bhagat Singh Sentenced To Death
7 अक्टूबर 1930 को न्यायालय में भगत सिंह और उनके दो साथी राजगुरु और सुखदेव सिंह को फांसी की सजा सना दी गई। और इसी के साथ पूरे लाहौर शहर में धारा 144 लागू कर दी गई। न्यायालय द्वारा 24 मार्च 1931 को तीनों क्रांतिकारियों को फांसी देने का निर्णय सुनाया गया। तीनों क्रांतिकारियों की फांसी की सजा सून पूरा देश हैरान था।
भगत सिंह, सुखदेव सिंह और राजगुरु की फांसी की सजा को माफ करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष पंडित मदन मोहन मालवीय और खुद महात्मा गांधी ने प्रिवी परिषद में अपील की किंतु उनकी सारी अपीलो और प्रयासों को न्यायालय द्वारा नकार दिया गया। हांलाकि भगत सिंह यह कभी नहीं चाहते थे कि उनकी फांसी की सजा माफ की जाए।
आखिर में जब इनकी फांसी की सजा रोकने के सभी प्रयास नाकाम रहे, तब इन्हें निर्धारित तिथि से एक दिन पहले अर्थात 23 मार्च 1931 को शाम 7:33 पर भारत मां के तीनो लाल भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई।
कहां जाता है जब भगत सिंह को फांसी पर ले जाने का समय हुआ तब से लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और जब उनसे उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई तब उन्होंने कहा, मैं लेनिन की जीवनी पढ़ रहा हूं और कृपा मुझे इस जीवनी को पूरा पढ़ने का समय दिया जाए। और अंत में तीनों आजादी के प्रेमी आखरी बार गले मिले और एक – दूसरे का हाथ पकड़कर मस्ती में गीत – गाते हुए फांसी के तख्त की ओर चल पड़े –
मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे । मेरा रंग दे बसंती चोला, माय रंग दे, मेरा रंग दे, बसंती चोला ।।
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