About Family In Hindi
परिवार हो या कॉर्पोरेट जगत, जीवन का आनंद इसमें नहीं है कि आपके पास कितनी सत्ता-संपदा है। असली खुशी लोगों के साथ नजदीकी रिशते बनाने, घनिष्ठता से आता है। इसलिए जरूरी है कि हमारा लक्ष्य प्रोजेक्ट की सफलता अथवा चीज वस्तु के महत्व के साथ-साथ अपने व्यक्तियों की जरूरत और उनकी फिक्र पर भी केंद्रित हो।
एक समृद्ध परिवार के मुखिया ने घर के समीप बड़ी तमन्ना से बगीचा बनाया। वह नियमित रूप से बगीचे में पौधों की देखभाल करने जाते थे। एक सुबह की बात है। वह मशीन की मदद से बगीचे में पौधों के बीच से खरपतवार निकाल रहे थे। उनके दोनों बच्चे भी बगीचे में आ गए और खेल में लीन हो गए। उसी समय पिता के मोबाइल की घंटी बजी और पिता मोबाइल पर बतियाने में खो गए। खरपतवार काटने वाली मशीन बच्चों के हाथ लग गई। बालपन के साथ बच्चों ने मशीन चलानी शुरू की और पौधों पर चला दी।
मोबाइल कॉल से विराम लेते ही पिता की इस दृश्य पर नजर पड़ी तो वह हैरान थे। कई सप्ताह के जतन से बड़े किए पौधों को तहस-नहस देखकर उनका बच्चों के प्रति प्रेम गुस्से में बदल गया। चीखते हुए उन्होंने बच्चों की धुलाई कर दी। पति की ऊंची आवाज सुन पत्नी ने रसोई की खिड़की से बगीचे में नजर डाली। देखते ही वह स्थिति को भांप गई। पति को पुकारते हुए तेज स्वर में कहा- ‘सुनिए जी, हमें बच्चों को पालना है पौधों को नहीं।
सीधे शब्दों में कहें तो हमारे जीवन में कभी न कभी ऐसा घटता है कि हमें चीज-वस्तु रुपए-पैसे से इतना लगाव हो जाता है कि हम अपने स्वजन-सहकर्मियों के साथ अपने संबंधों की भेंट चढ़ा देते हैं। हमेशा ध्यान रखिए वस्तु-कार्य और धन अल्प आयु होता है, जबकि संबंधों का नाता दीर्घकालीन। पश्चिमी जगत का जीवन मंत्र सूत्र है ‘लोगों को इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप कितना जानते हैं जब तक कि उन्हें यह पता नहीं चलता कि आपको उनकी कितनी फिक्र है।

बहुराष्ट्रीय कंपनियां इस सत्य को भलीभांति समझती हैं। कंपनी से जुड़े लोगों का ख्याल एक परिवार की भावना के साथ रखती हैं। सुख-दुःख के समय में शामिल होकर, साथ देकर भावनात्मक जुड़ाव पर बल देती हैं। ऐसे में कोई शंका नहीं कि ऐसी कंपनी से जुड़े लोग अपना श्रेष्ठतम योगदान देने में कोई कसर छोड़ें।
टाटा स्टील कंपनी ने कोरोना संकटकाल में प्राण गंवाने वाले कर्मचारियों को लेकर बड़ी लकीर खींची। कोरोना से मृत्यु को प्राप्त हुए कर्मचारी की 60 वर्ष की उम्र होने तक संबंधित कर्मचारी के समस्त परिवार को अंतिम वेतन जारी रखने का फैसला किया। वह भी मेडिकल और आवास सुविधा के साथ। कंपनियों को भी एहसास है कि व्यक्तियों को संभाल लिया तो चीज-वस्तु-कामकाज और रुपए तो सहज ही संभल जाएंगे।
प्रमुख स्वामी महाराज श्रद्धालू-भक्तों का व्यक्तिगत स्तर पर बहुत ख्याल रखते थे। केवल आध्यात्मिक विकास ही नहीं अपित शारीरिक-मानसिक, व्यावहारिक पहलुओं की भी फिक्र करते थे। हर दिन हजारों भक्तों से मुलाकात के बावजूद वह श्रद्धालुओं से जुड़ी छोटी से छोटी बातों का ध्यान रखते थे। जीवन के सुख-दुख में स्वामी जी का सहयोग सब अनुभव करते थे। प्रमुख स्वामी महाराज के वचन पर भक्त अपना सर्वस्व समर्पण के लिए तत्पर रहते थे। भक्तों से इस जुड़ाव के लिए प्रमुख स्वामी महाराज ने अपना समूचे अस्तित्व को घिस दिया था।
डॉ. अब्दुल कलाम ने एक साक्षात्कार में कहा था कि प्रमुख स्वामी महाराज के जीवन से मैंने सीखा कि वह हमेशा यही विचार करते थे कि मैं क्या कर सकता हूं? लोगों से काम करवाने के मामले में बहुधा ‘मैं कैसे ज्यादा से ज्यादा काम करवा सकूं’ के दृष्टिकोण को समझा जा सकता है। नेकी करें और भूल जाएं। ईश्वर से जो प्रतिफल मिलता है उसकी कल्पना भी नहीं होगी।
अत: महान लोग हमेशा यही विचार करते हैं कि मैं दूसरों के लिए क्या कर सकता हूं। व्यक्ति को महत्व देने से हमारा आत्मीय बैंक खाता समृद्ध होता है। हां, याद रहे कि ये कार्य निस्वार्थ होना चाहिए।
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